Thursday, 11 May 2017

युवाओं पर हावी होता नशाखोरी का खुमार


फोटो सोर्स -जनसत्ता

युवाओं पर हावी होता नशाखोरी का खुमार


आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय छात्रों में तथा युवाओं में तेजी से बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति है। एक शिक्षक, अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह जिम्मेदारी बनती है कि इस बीमारी को और विकराल रूप धारण न करने दें।  अब तो समाज को इसे खत्म करने की पहल करनी ही होगी…
नशा एक ऐसी बीमारी का रूप धारण कर चुकी है, जो हमारे समाज को, प्रदेश को, देश को तेजी से निगलती जा रही है। आज शहरों और गांवों में पढ़ने-खेलने की उम्र में स्कूल और कालेज के बच्चे एवं युवा वर्ग मादक पदार्थों के शिकंजे में जकड़ता जा रहा है। इस बुराई के कुछ हद तक जिम्मेदार हम लोग भी हैं। हम अपने काम-धंधों में इतना उलझ गए हैं कि हमें फुर्सत ही नहीं है यह जानने के लिए कि हमारा बच्चा कहां जा रहा है, क्या कर रहा है। इन तमाम बातों की कोई परवाह नहीं रह गई है। महज बच्चों की मांगों को पूरा करना ही हम अपनी जिम्मेदारी समझ बैठे हैं। ऐसे में प्रश्न यह भी कि वे कौन से परिस्थितियां हैं, जिनके अधीन होकर लोग नशा कर रहे हैं? मादक पदार्थ आज हर जगह गांव-गांव, शहर-शहर में आसानी से मिल रहे हैं। लोग कभी शौक के नाम पर तो कभी दोस्ती की आड़ में, कभी दुनिया के दुःखों का बहाना बनाकर तो कभी कोई मजबूरी जताकर, कभी टेंशन तो कभी बोरियत दूर करने के लिए लोग शराब, तंबाकू, भांग, अफीम, फ्ल्यूड और न जाने कौन-कौन से नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। लेकिन नशा कब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है, उन्हें पता ही नहीं चलता। जब तक पता चलता है, तब बहुत देर हो चुकी होती है। आज नशे के कितने ही नुकसान सामने आ रहे हैं। हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे एक बड़ा कारण नशा ही है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए दुर्घटनाओं को आमंत्रित करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी, बच्चों से मारपीट करना आम बात हो गई है। मुंह, गले व फेफड़े का कैंसर, ब्लड पे्रशर, अवसाद एवं अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है। आज युवा पीढ़ी नशे में इस कद्र मग्न है कि उसे यह नहीं पता कि यह मादक पदार्थ मानव शरीर की सुंदरता को नष्ट करके रख देता है। उनका शरीर खोखला होता जा रहा है। यह नशा युवा पीढ़ी की क्षमताओं को नष्ट करके उनकी सृजनशीलता को मिटा देता है। एक बार मादक पदार्थों की लत लग जाए तो व्यक्ति इनके बिना रह नहीं पाता और धीरे-धीरे नशे का गुलाम बन कर रह जाता है। इन युवाओं को शायद यह ज्ञान नहीं कि नशा उनके देखने, सुनने और महसूस करने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव डालता है। आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय छात्रों में तथा युवाओं में तेजी से बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति है। एक शिक्षक, अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह जिम्मेदारी बनती है कि इस बीमारी को और विकराल रूप धारण न करने दें।  अब तो समाज को इसे खत्म करने की पहल करनी ही होगी। कई बार हालात ऐसे हमारे सामने-सामने बच्चे नशा कर रहे हैं और हम देखकर भी चुप हैं? हम इन सब बच्चों को अनदेखा करके आखिर किसका भला कर रहे हैं। समय को देखें तो किसी अभिभावक के सामने ऐसा कहने से डर लगता है। बच्चे बिगड़ते भी उनके ही हैं, जो मां-बाप अपने बच्चों की बातों को पड़ोसी से, रिश्तेदारों से व अध्यापकों से छिपाते हैं। आज प्रत्येक बच्चे को घर का डर होना चाहिए। घर का डर होगा तो ही बच्चा पड़ोस, समाज से डरेगा। पड़ोस, समाज, अध्यापक सभी को मां-बाप के सहारे की जरूरत है। आज मां-बाप स्कूलों के भरोसे बैठे हैं। सरकार की नीतियां, हेल्पलाइन ऐसी है कि उनके डर से आज न मां-बाप अपने बच्चों को बोल पा रहे हैं और न अध्यापक। आज इस युवा पीढ़ी को चारों ओर से खुली छूट मिल रही है, आज मां-बाप या अध्यापक कुछ बोल रहे हैं तो उल्टा उनको धमकियां दी जा रही हैं। महंगे मोबाइल, महंगी बाइक, महंगा कपड़ा, महंगे जूते, बेचारे मां-बाप आज आटे की चक्की की तरह पिसते जा रहे हैं। बच्चों को कहीं किसी का डर नहीं, क्या स्कूल क्या घर। तभी आज का युवा खुलेआम नशे में घूम रहा है। कई बार तो शिक्षक को देखकर ऐसा दुस्साहस करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि अध्यापक केवल एक सरकारी कर्मचारी है और उसके हाथ बंधे हैं। आज अभिभावक भी गलती करता जा रहा है। वह भी अपने बच्चों के सामने अध्यापकों को वह सम्मान नहीं देते, जिससे उनके बच्चों के सामने उनकी गरिमा बरकरार रहे। ऐसा देखकर कैसे वे बच्चे अपने गुरुओं को अपना शुभचिंतक मानेंगे। इस विषय पर अभिभावकों को ध्यान देने की जरूरत है। अगर इस बुराई को खत्म करना है तो आज हमें समाज, सरकार और समाजसेवी संस्थाओं को एक ही आवाज में बोलना और काम करना होगा। अन्यथा आने वाली पीढ़ी शारीरिक व मानसिक रूप से खोखली हो जाएगी, जिसके जिम्मेदार हम सब होंगे। बड़े ध्यान से सोचने योग्य बात यह है कि बेटों के सुधार का जिम्मा पिता पर ज्यादा निर्भर है, जैसे एक अच्छी मां अपनी बेटी को दूसरों के घर में रहना सिखा देती है, तो बाप क्यों नहीं बेटों को अपने ही घर में अच्छा बना सकता। पिता का महत्त्व मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक है। इस संदर्भ में भी पिता अग्रणी भूमिका में आ सकते हैं। युवाओं को भी विचार करना होगा कि आपके लिए आपका परिवार, कैरियर और स्वास्थ्य कितनी अहमियत रखते हैं। नशा करने से इन चीजों पर कितना असर हो रहा है। बेहतर होगा कि आप अपने आपको खेलकूद, किताबें पढ़ना आदि गतिविधियों में व्यस्त रखें।
http://www.divyahimachal.com/2015/04/युवाओं-पर-हावी-होता-नशाखो/

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