देश की अधिकांश युवा पीढ़ी भटक रही अगर ध्यान न दिया गया तो भविष्य का क्या होगा
प्रतिस्पर्धा की होड़, बेरोजगारी का बोलबाला, रसायनिक खानपान, नशे की आदत, असुरक्षित भविष्य व आरक्षण जैसे कारण देश की युवा पीढ़ी के लिए अभिशाप बन गए हैं, सरकार को इस संदर्भ में अतिशीघ्र ठोस कदम उठाने ही होंगे, क्योंकि दिन-ब-दिन देश की युवा पीढ़ी भटकाव के मार्ग की ओर अग्रसर होती जा रही है। समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन भी दूर नहीं जब देश का स्वयं का भविष्य युवा पीढ़ी के अभाव के कारण संकट में पड़ जाएगा। भारत की पचास प्रतिशत से भी अधिक आबादी पच्चीस वर्ष से कम उम्र की है और इतने बड़े आंकड़े के बावजूद सरकार युवा पीढ़ी के उत्थान हेतू गंभीर नहीं है, गंभीर होती तो युवा पीढ़ी भटकाव के मार्ग पर चलने के लिए बाधित ही न होती।
सर्वप्रथम हम बात करेंगे देश की आरक्षण प्रणाली को लेकर। सरकार ने आरक्षण जैसी खतरनाक प्रणाली देश में स्वयं के स्वहित के लिए देश के करोड़ों युवाओं पर जबरन थौंप रखी हैं देश में सैकड़ों ऐसे समुदाय है जो अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं ये सभी समुदाय चाहे आर्थिक रूप से सक्षम है या कमजोर, लेकिन उनको आरक्षण का लाभ मिलना निर्धारित है इसके साथ-साथ देश में हजारों कमजोर व निम्न स्तर की जातियां व जनजातियां हैं, जिनको आरक्षण का लाभ सीधे-सीधे रूप में प्राप्त हो रहा है सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि यह आरक्षण शैक्षणिक योग्यता न होने पर भी उनको प्राप्त हो रहा है। हम यह नहीं कहते कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों को व अल्पसंख्यक समुदायों को आरक्षण का लाभ मत दो, लेकिन यह कहां की नीति है कि उनको शैक्षणिक योग्यता के अभाव में भी आरक्षण सुविधा प्राप्त हो। लेखक का कथन है कि आरक्षण में भी आरक्षण सुविधा प्राप्त हो लेखक का कथन है कि आरक्षण में मात्र आर्थिक आधार पर ही सुविधा प्रदान की जानी चाहिए न कि योग्यता के आधार पर। इस आरक्षण प्रणाली का सीधा-सीधा दुष्प्रभाव सामान्य श्रेणी के युवाओं के मानस पर पड़ा है सामान्य वर्ग का युवा सरकार द्वारा थौंपी गई आरक्षण नीति के कारण मानसिक अवसाद की बीमारी से ग्रसित हो गया है एक तरफ अल्पसंख्यक समुदाय व अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लाखों युवा शैक्षणिक योग्यता में योग्य न होते हुए भी आरक्षण प्रणाली का लाभ उठा रहे हैं और दूसरी तरफ सामान्य वर्ग के युवा श्रेष्ठ शैक्षणिक योग्यता के होते हुए भी बेरोजगार घूम रहे हैं कैसे न हो इनको मानसिक अवसाद। घर में गरीबी, ऊपर से बेरोजगारी उनको गर्त में धकेले जा रही है माता-पिता कर्ज उठाकर अपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान कराने में अपने आपको बेचने पर आतुर हैं और परिणाम के रूप में उनको अपने बच्चों का भविष्य शून्य में ही दिखाई दे रहा है, ऐसी अवस्था में युवा वर्ग मानसिक रूप से त्रस्त न हो तो क्या हों। घटिया सरकारी आरक्षण जैसी नीतियां देश की युवा पीढ़ी के लिए अभिशाप बन गई हैं, लेखक का सुझाव है कि सरकार समय रहते आरक्षण जैसी समस्या का तत्काल समाधान करें अन्यथा कभी भी देश में युवाओं के आक्रोश के कारण अराजकता फैल सकती है इसका ताजा उदाहरण गुजरात के पटेल समुदाय के आरक्षण को सामने रखकर देखा जा सकता है। अभी यह भाग गुजरात में लगी थी तथा उसे साम, दाम, दंड, भेद की नीति के अन्तर्गत शान्त कर दिया गया, लेकिन सरकार कब तक इस तरह के आंदोलनों को शान्त करकी रहेगी। देश में सैकड़ों मानसिक रूप से जले-भूने हार्दिक पटेल, आरक्षण प्रणाली को लेकर कभी भी बवाल खड़ा कर सकते हैं। इस आरक्षण प्रणाली को लेकर देखने में यह भी आ रहा है कि सामान्य वर्ग के युवक-युवतियां शैक्षणिक योग्यता श्रेष्ठ होने के बावजूद जब उस योग्यता का लाभ नहीं उठा पाते तो ऐसे में वे मौत को गले लगाने में देर नहीं लगाते, ऐसी परिस्थितियां प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है। लेखक का सुझाव है कि केन्द्र सरकार से कि वह देश से आरक्षण प्रणाली ही समाप्त कर दे तो बेहतर होगा।
आइये अब आपको नशे की दुनिया की ओर लेकर चलते हैं आज की युवा पीढ़ी नशे की आदी हो चुकी है मन मुताबिक वातावरण न मिलने के कारण नौजवान युवक व युवतियां नशे के समुद्र में गहरे पानी तक उतर गई है। शराब, सिगरेट, गांजा, चरस, कोकीन, हेरोइन व अन्य प्रकार की ड्रग्स युवाओं की पसंद बन चुके हैं नशा उनके तन-बदन में जहर की तरह फैल चुका है। वे नशे के इतने आदी हो चुके हैं कि वे नशे की खातिर कुछ व अप्रिय करने को आतुर रहने लगे हैं। माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए कॉलेजों व विश्वविद्यालयों के साथ-साथ उत्तम शैक्षणिक संस्थाओं में पढऩे के लिए भेजते हैं, वहां जाकर युवा पीढ़ी एक-दूसरे को देख-देखकर नशे के शौकीन हो गए हैं ऐसे में शैक्षणिक संस्थान भी उनकी इन हरकतों पर लगाम लगाने के लिए लाचार व बेवश हो चुके हैं आज देश के सबसे समृद्ध राज्य पंजाब के अधिकांशत: युवक-युवतियां नशे की लत से ग्रसित हैं और वहां की सरकार इस संदर्भ में बिल्कुल चुप बैठी है व उनको बचाने के लिए कोई भी कारगर कदम उठा नहीं पा रही है इसका कारण यह भी देखने को मिला कि वहां की युवा पीढ़ी पढ़-लिखकर भी बेरोजगार है सरकारी नौकरियां प्राप्त करने के लिए लाखों रुपयों की रिश्वत देनी पड़ती है, रिश्वत देने के लिए युवाओं के अभिभावकों के पास धन की व्यवस्था नहीं है इस कारण बेरोजगार युवा पीढ़ी नशे की आदी हो चुकी है। ऐसा सब कुछ पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में भी हो रहा है, लेकिन तुलनात्मक तौर से पंजाब का वातावरण नशे को लेकर कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया है
समय रहते इसको संभावना होगा अन्यथा इसके परिणाम बहुत भयावह होंगे। नशे के आदी हो चुके युवक-युवतियां मर्यादाओं की सीमा लांघते जा रहे हैं पब, शीशा लाउंज में जाना युवा पीढ़ी के लिए फैशन बन गया है। आजकल की युवा पीढ़ी शाम होने का इंतजार बेसब्री से करती है क्योंकि शाम होते ही यह पीढ़ी नशे के ठिकानों पर पहुंच जाती है नशों के ठिकानों में चाहे पब हो, चाहे शीशा लाउंज हो, चाहे बार हो या कोई अन्य नशा प्राप्ति का ठिकाना हो वहां पर युवाओं की भीड़ आसानी से देखने में मिल जाती हैं, इन सभी नशे के ठिकानों पर छात्र-छात्राएं संयुक्त रूप से देखने को मिलती है, हद तो यहां तक हो गई है कि आजकल युवतियां भी युवकों से कम नहीं पड़ रही है। चूंकि पब देर रात तक खुले रहते हैं इसलिए युवा वर्ग पब में विशेष रूप से देखने को मिल रहे हैं। शीशा लाउंज में युवतियां हुक्का पीने लगी हैं इसके अलावा रेव पार्टियों में शराब खुलेआम परोसी जाती है, जिसमें युवक-युवतियां नशा करके अश्लील हरकतें करने से भी बाज नहीं आते हैं। देश के बड़े शहरों में यह हाल हो चुका है कि पबों में अक्सर प्रेमी युवग पहुंचते हैं तो उनको पबों में प्रवेश पाने के लिए एंट्री फीस चुकानी पड़ती है साथ ही साथ हजार दो हजार का अन्य खर्च भी करना पड़ता है। इस खर्च से बचने के लिए प्रेमी युगल एकांत को ढूंढते हैं और नशा करके दिनभर सैर सपाटा करते हैं नशे के कारण प्रेमी युवग आपस में अश्लील हरकतें करते हैं इस बात का फायदा कुछ असामाजिक तत्व उठाते हैं वे उन पर हावी हो जाते हैं उनको पता होता है कि यह प्रेमी जोड़ा है ऐसे में युवतियां कई बार उन असामाजिक तत्वों द्वारा बलात्कार का शिकार हो जाती है। परिवार की इज्जत और जान जाने के डर से युवतियां चुपचाप इस पीड़ा को उम्रभर सहती हैं। नशे की लत के कारण ही आजकल छात्र-छात्राओं में लिव-इन-रिलेशनशिप के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसी कारण सभी सभ्यताएं व मान्यताएं टूट रही हैं।
देश की युवा पीढ़ी भटकाव की ओर अग्रसर हो रही है इसका एक मुख्य कारण बेरोजगारी भी है। भ्रष्टाचार के गर्त में डूबे देश में युवा पीढ़ी के लिए बेरोजगार होना देश का दुर्भाग्य ही तो हैं। आज देश में कुछ प्रतिशत ही कॉलेज के स्नातक को रोजगार मिलता है। प्रत्येक वर्ष देश में लगभग दो लाख छात्र एमबीए तथा लगभग पचास हजार छात्र बी-टैक करके बेरोजगार होकर घर में बैठे हैं या बाजारों में धक्के खा रहे हैं। मात्र तकनीकी एवं प्रबंधकीय संस्थानों के बलबूते पर देश की युवा पीढ़ी सभ्य नागरिक नहीं बन सकती, क्योंकि बेरोजगारी का सामना तो इन संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों को भी तो करना पड़ता है बेरोजगारी ने देश में अपराध करने का अनुपात बहुत अधिक बढ़ा दिया है युवा पीढ़ी अपराध-बोध से ग्रसित होते जा रही है। वह बेरोजगारी के कारण किसी भी अपराध को करने में हिचकिचाहट नहीं दिखलाती। देश में बेरोजगारी के कारण हत्याएं, आत्महत्याएं, बलात्कार, गैंगरेप, अपहरण, फिरौती, डकैती व अन्य घटनाएं नियमित घटित हो रही है अगर देश का प्रत्येक नौजवान रोजगार में लगा रहे तो उपरोक्त घटनाएं घटित ही नहीं हो सकती। यह बात सत्य है कि जीवन में जिन्दगी जीने के लिए पैसे का बहुत महत्व होता है, लेकिन वर्तमान युवा पीढ़ी आजकल मात्र धन को ही भगवान समझ बैठी है, इसलिए वह धन को प्राप्त करने के लिए कुछ भी अनर्थ करने को ललायित रहती है। चूंकि देश में विगत दो दशकों से पाश्चात्य संस्कृति व विलासिता भरा जीवन जीना ज्यादा प्रचलन में आ गया है और बेरोजगारी के कारण युवा पीढ़ी विलासिता भरा जीवन जी नहीं पाती तो वह मानसिक रूप से अपराध बोध की ओर अग्रसर होने लग रही है अपराध बोध में सबसे बड़ी समस्या है युवाओं द्वारा स्वयं की आत्महत्या करना। जिंदगी को 21 वर्ष की उम्र के युवाओं की है। वैसे आत्महत्या करने वाले राज्यों में दक्षिण भारत के युवा ज्यादा हैं विशेष रूप से दक्षिण भारत के चार राज्य युवाओं की आत्महत्या में विशेष रूप से अग्रणी कहलाते हैं। देश में आत्महत्याओं से होने वाली कुल मौतों में से चालीस प्रतिशत मौतें अकेले दक्षिण भारत के चार बड़े राज्यों में होती है, जबकि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण भारत में देश के अन्य राज्यों की बजाए कहीं ज्यादा हैं। इन आत्महत्याओं के बारे में अध्ययन किया जाए तो सवाल यह उठता है कि आखिर युवा पीढ़ी अपनी जिंदगी को इतनी आसानी से क्यों खत्म करने पर तुली है क्या उन्हें जीवन का कुछ मूल्य ही नहीं पता क्या उनकी नजर में जिंदगी का कोई मोल ही नहीं हैं क्या उनकी जिंदगी का मुख्य ध्येय मात्र धन कमाना ही है। आज देश की स्थिति ऐसी है कि इस देश में प्रत्येक घंटे में कोई न कोई बलात्कार की घटना घटित हो रही है ठीक वैसे ही प्रत्येक घंटे में युवाओं द्वारा आत्महत्या भी की जा रही है। समाज में चारों तरफ अपराध फैला हुआ है। विशेष रूप से साइबर अपराध, हिंसा व भ्रष्टाचार में युवा पीढ़ी शामिल होती जा रही है युवा की नीयत स्पष्ट है कि अगर कुछ भी उनके सामने गलत हो रहा है तो उसके विरोध में खड़ा होना उनके लिए आवश्यक समझा जाता है। देश का एक बहुत बड़ा युवा प्रतिशत सारा दिन मोबाइल, वाट्सअप, चैटिंग, यू-ट्यूब, फेसबुक, नेटसर्फिंग व ट्वीटर पर ही उलझा रहता है आंखों की बीमारियों का शिकार हो चला हैं। अप्रैल 2016 की मीडिया मानीटरिंग एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 64 मिलियन फेसबुक यूजर हो चुके हैं इनमें अधिकांश यूजर 18 से 34 वर्ष के हैं। युवाओं के साथ-साथ मोबाइल फोन, डेस्कटॉप व वीडियो गेम्स के द्वारा बालकों का बालपन समाप्त होते जा रहा है। आत्महत्या करना युवाओं में फैशन बन गया है किसी प्रतियोगिता में या किसी परीक्षा में फेल हो गये या नम्बर कम आये तो आत्महत्या कर लेते हैं रात को घर पर देरी से पहुंचने पर माता-पिता ने डांटा या पूछ लिया कि इतनी देरी से क्यों आए तो आत्महत्या कर लेते हैं मुंह मांगी वस्तु नहीं मिली तो आत्महत्या कर लेते हैं।
आखिर देश की युवा पीढ़ी इतनी कमजोर व लाचार क्यों हो गई हैं क्या उसके पास मानस नाम का शब्द शेष में बचा नहीं, क्या आखिर देश का युवा-वर्ग इतना कमजोर क्यों हो गया ऐसा आज से दो-तीन दशक पहले तो नहीं था। आखिर अब इसी युवा पीढ़ी को क्या हो गया इस संदर्भ में चिन्तन जरूरी है। यह बात सत्य है कि देश में शिक्षा प्रणाली में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। देश में शिक्षा प्रणाली दूषित थी दूषित है व दूषित ही रहेगी। इसलिए अभिभावकों को ही अपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार व मर्यादाओं में रहना सिखाना होगा। साथ ही साथ उनमें सहनशीलता, साहस व ज्ञान का भंडार सहजता से भरना होगा उनमें आत्मविश्वास जगाना होगा तभी आत्महत्याओं जैसे अपराधों पर रोक लग पायेगा। वैसे लेखक का युवा पीढ़ी को एक सुझाव है कि हे मेरे देश के युवाओं हालात से भागों मत विपत्ती का डटकर मुकाबला करो आप इस राष्ट्र के कर्णधार हो अगर आप युवा ही टूट गए तो देश को सभालेगा कौन? आप युवा वर्ग ही इस भारत के गौरव भरा भविष्य हो जीवन बार-बार नहीं मिलता अगर ईश्वर ने आपको जीवन दिया है तो इसे मजाक मत समझो आज नहीं तो कल तो आपका होगा। खुश रहकर राष्ट्रय को गौरवांवित करो अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर। जीवन अनमोल है इसे जीकर तो देखो आनंद स्वयंमेव आएगा। कायर बनकर जीवन को मौत के हवाले मत करो हर मुश्किल का सामना डटकर करो सफलता आपके कदमों में होगी।
युवा पीढ़ी भटकाव के मार्ग पर अग्रसर क्यों होती जा रही है इस संदर्भ में कुछ एक बातें ऐसी भी है जिन्हें हमें रोकना होगा लिहाजा माता-पिता अपनी महत्वाकांक्षा का बोझ युवाओं पर डाल रहे हैं, जिसके कारण युवा पीढ़ी मानसिक रूप से टूटती जा रही है जिस शिक्षा में उसकी रूचि है वह शिक्षा उसके माता-पिता को पसंद नहीं और माता-पिता जिस क्षेत्र में उसको भेजना चाहते हैं वह क्षेत्र उसको पसंद नहीं ऐसे में युवा वर्ग मानसिक अवसाद से ग्रसित हो जाता है इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चे को उसकी रूचि के अनुरूप शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश पाने दे ताकि सफलता उसको जल्दी मिल सके। युवाओं को उनके दोस्त भी प्रभावित करते हैं युवाओं को चाहिए कि वे अहम् फैसलों में स्वविवेक से काम ले न कि दोस्तों के दबाव से, क्योंकि भविष्य स्वयं ने निर्धारित करना है दोस्तों ने नहीं और अहम् फैसलों को लेते समय युवा मन में यह न सोचे कि अगर मैंने अपने दोस्तों का कहना नहीं माना तो वे बुरा मान जाएंगे। दोस्त को दोस्ती का वास्ता देकर अहम् फैसले स्वयं करें मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का कथन है कि युवा पीढ़ी अक्सर गर्लफ्रैंड व ब्यॉयफ्रैंड के ब्रेकअप के कारण व बात-बात में माता-पिता की टोका-टाकी के कारण मानसिक अवसाद में आ जाती है यह बात किसी हद तक ठीक भी है दरअसल में आज की युवा पीढ़ी विगत दो-तीन दशकों की पीढ़ी से विचारधारा में बिल्कुल भिन्न है। इसलिए आजकल माता-पिता को भी समय के अनुरूप अपने आपको ढालना होगा अन्यथा परिणाम सुखद नहीं होंगे। आज का युवा अपने कैरियर को लेकर बहुत बड़ी उलझन में हैं वह इस संदर्भ में किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नहीं कर रहा है। वैसे भी इस युग में माता-पिता अपने बच्चे को अपना दोस्त बना ले तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि जनरेशन गैप बहुत हो चुका है। युवा अवस्था एक परिंदे की तरह होती है प्रत्येक युवा सारे शौक पूरा करना चाहता है, लेकिन जब उसके पास सभी शौकों को पूर्ण करने के लिए सीमित साधन होते हैं तो वह उन शौकों को पूरा नहीं कर पाता ऐसे में वह गलत मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है, इसके लिए हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था भी जिम्मेदारी हैं। और अन्त में लेखक केन्द्र में बैठी सरकार से आग्रह करता है कि वह देश के युवा वर्ग के लिए गंभीरता से आवश्यक कदम उठाये। खाद्यान मंत्रालय से अनुरोध है कि वह कृषकों पर नकेल डालकर खतरनाक व जहरीली रसायनिक खेती पर अंकुश लगाए क्योंकि देश के प्रत्येक खाद्यान्न व साग-सब्जी के साथ-साथ फलादि भी रसायनिक खादों से उपजाए जा रहे हैं जिससे युवा वर्ग के साथ प्रत्येक उम्र का जातक विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होता जा रहा है। इसके साथ-साथ केन्द्र सरकार युवाओं को रोजगार प्रदान करें व रोजगार के अच्छे अवसर भी उपलब्ध करवाएं आरक्षण जैसी जहरीली बीमारी को जड़ से समाप्त करें, भ्रष्टाचार पर नकेल डाले, पूंजीपतियों पर शिकंजा कसे। देश का धन लूटकर व खाकर जो लोग विदेशों में भाग गए हैं उनकी सम्पतियां जब्त करें, नशे पर सारे देश में प्रतिबंध लगाए इतना भर कर लेने से राष्ट्र के कर्णधार युवा स्वत: ही सही मार्ग को पकड़ लेंगे और उनका मानस भटकाव की ओर कदापि नहीं जाएगा। मोदीजी आपको भी लेखक की सलाह है कि युवा वर्ग देश के सुनहरी भविष्य की आस होते हैं युवा वर्ग देश की रीढ़ की हड्डी होता है इस युवा वर्ग को आपने संभालना है अगर युवा वर्ग खुश है तो दुनिया की ऐसी कोई ताकत नहीं जो हमारे देश की तरफ आंख उठाकर भी देख लें।
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