Sunday, 7 May 2017

प्रेरणा कथा परम पुरुष को मानने वाला भेदभाव को स्वीकार नहीं करता


प्रेरणा कथा परम पुरुष को मानने वाला भेदभाव को स्वीकार नहीं करता


अगर जीना है, आगे बढ़ना है तो कोई एक रास्ता चुनना होगा। परम पुरुष को मानो या ऊंच-नीच को। जो दोनों को मानता है, वह असल में ढोंग कर रहा होता है। वह खुद को भी छलता है और समाज को भी। आजकल ऐसे लोग बढ़ गए हैं।
साधना मार्ग में नियम है कि एक को पकड़े रहो, एक के पीछे दौड़ते रहो, एक से मुहब्बत करो। एक बार हनुमान से पूछा गया था कि परम पुरुष के तो अनेक नाम हैं, तो तुम अनेक नामों का व्यवहार क्यों नहीं करते हो।

माना कि राम तुम्हारे इष्ट हैं पर और नामों का भी तो महत्व है। इस पर हनुमान का उत्तर था- मैं जानता हूं कि दार्शनिक विचार के अनुसार श्रीनाथ अर्थात नारायण और जानकीनाथ अर्थात राम इन दोनों में कोई अंतर नहीं हैं।

दोनों एक हैं यह अच्छी तरह मालूम है मगर मैं अनेक के पीछे, अनेक नामों के पीछे दौड़ना नहीं चाहता हूं। मैं एक नाव पर रहना चाहता हूं और मेरे लिए दुनिया में सिर्फ राम ही हैं और कोई नहीं हैं। मैं और किसी को नहीं जानता हूं और किसी को नहीं मानता हूं।

इसलिए साधना मार्ग में मनुष्य को एक को लेकर रहना है। उस पर ध्यान लगाना है। उसके प्रति समर्पित हो जाना है। कहा भी गया है कि एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।

अगर परम पुरुष कहते हैं, तुम मूर्ख हो, तुम पतित हो, मैं तुमसे मोहब्बत करना नहीं चाहता हूं, तो तुम कहो हां, परम पुरूष, मै हीन हूं, मैं पतित हूं मगर हूं तो तुम्हारा ही। तुम चाहो या नहीं, मैं तुमसे मोहब्बत करता रहूंगा।

साधना का क्रम और आध्यात्मिक साधना मानसिक स्तर के अनुसार होती है। जैसे जीव-जगत में काममय कोष थोड़ा सा है, और कुछ नहीं है। भूख-प्यास पेड़-पौधे समझ लेते हैं, उससे अधिक नहीं।

अन्य जीव-जंतुओं में मन थोड़ा सा उन्नत है और कौन प्यार करता है, कौन निरादर करता है यह सब पशु-पक्षी कुछ हद तक समझ लेते हैं अर्थात् केवल खाना-पीना नहीं, उसके अतिरिक्त और चीजों को महसूस करने की क्षमता उनमें है।

यही मनुष्य और पशु-पक्षी में फर्क है। मनुष्य के पास एक उन्नत मन है। वह अपना भला-बुरा सोच सकता है। मनुष्य अच्छी तरह जानता है कि उसका जीवन परम पुरूष पर केंद्रित है।

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