Thursday, 20 July 2017

ऐसे बैक्टीरिया जिनका हमारे जीवन में न होने से हो सकता है बड़ा नुकसान आईये जाने विस्तार से


ऐसे बैक्टीरिया जिनका हमारे जीवन में न होने से हो सकता है बड़ा नुकसान आईये जाने विस्तार से

औद्योगिक उत्पादों में सूक्ष्मजीव
उद्योगों में भी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग बहुत से उत्पादों के संश्लेषण में किया जाता है जो मनुष्य के लिए काफी मूल्यवान होते हैं। मादक पेय तथा प्रतिजैविक (ऐंटीबॉयटिक) इसके कुछ उदाहरण हैं। व्यावसायिक पैमाने पर सूक्ष्मजीवियों को पैदा करने के लिए बड़े बर्तन की आवश्यकता होती है जिसे 'फरमैंटर' या 'किण्वक' कहते हैं।
किण्वित पेय
सूक्ष्मजीव (विशेषकर यीस्ट) का प्रयोग प्राचीन काल से वाइन, बियर, ह्निस्की, ब्रांडी या रम जैसे पेयों के उत्पादन में किया जाता आ रहा है। वही यीस्ट सैकेरोमाइसीज सैरीबिसी (जो सामान्यतः 'ब्रीवर्स यीस्ट' के नाम से भी प्रसिद्ध है) ब्रैड बनाने तथा माल्टीकृत धान्यों तथा फलों के रसों में ऐथानॉल उत्पन्न करने में प्रयोग किया जाता है। किण्वन तथा विभिन्न प्रकार के संसाधन (आसवन आदि) कच्चे पदार्थों पर निर्भर करती है : वाइन तथा बियर का उत्पादन बिना आसवन के किया जाता है जबकि ह्निस्की, ब्रांडी तथा रम किण्वित रस के आसवन द्वारा तैयार किए जाते हैं।
प्रतिजैविक (ऐंटीबॉयोटिक)
सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रतिजैविकों (ऐंटीबॉयोटिकों) का उत्पादन 20वीं शताब्दी की अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण खोज और मानव समाज के कल्याण के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। प्रतिजैविक (ऐंटीबॉयोटिक) एक प्रकार के रसायनिक पदार्थ हैं, जिनका निर्माण कुछ सूक्ष्मजीवियों द्वारा होता है। यह अन्य (रोग उत्पन्न करने वाले) सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि को मंद कर सकते हैं अथवा उन्हें मार सकते हैं। पैनीसीलिन सबसे पहला ऐंटीबॉयोटिक था। इस ऐंटीबॉयोटिक का प्रयोग दूसरे विश्व युद्ध में घायल अमरीकन सिपाहियों के उपचार में व्यापक रूप से किया गया।
पैनीसिलिन के बाद अन्य सूक्ष्मजीवियों से अन्य ऐंटीबॉयोटिकों को बनाया गया। प्लेग, काली खाँसी, डिप्थीरिया (गलघोंटू), कुष्ठरोग जैसे भयानक रोग, जिनसे संसार में लाखों लोग मरे हैं, के उपचार के लिए ऐंटीबॉयोटिकों ने हमारी क्षमता में वृद्धि की एक शक्ति के रूप में आये हैं। आज हम ऐंटीबॉयोटिकों से रहित संसार की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं।
रसायन, एंजाइम तथा अन्य जैवसक्रिय अणु

कार्बनिक अम्ल, ऐल्कोहल तथा एंजाइम आदि कुछ विशेष प्रकार के रसायनों के व्यावसायिक तथा औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
अम्लीय उत्पादकों के उदाहरण
सिट्रिक अम्ल का ऐस्परजिलस नाइगर (एक कवक),
एसीटिक अम्ल का एसीटोबैक्टर एसिटाई (जीवाणु)
ब्युट्रिक अम्ल का क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटायलिकम (एक जीवाणु) तथा
लेक्टिक अम्ल का लैक्टोबैसिलस
ऐथानॉल के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए यीस्ट (सैकेरोमाइसीज सैरीविसेएई) का प्रयोग किया जाता है। लाइपेज का प्रयोग धुलाई में कपड़ों से तेल के धब्बे हटाने में किया जाने लगा है। हम बाजार से खरीद कर फल-रस की जो बोतल लाते हैं उसका रस घर में बने रस की तुलना में अधिक साफ दिखाई पड़ता है। पैक्टीनेजिज तथा प्रोटीऐजिज के प्रयोग के कारण बोतल वाला रस अधिक स्वच्छ एवं साफ होता है। स्ट्रैप्टोकाइनेज स्ट्रैप्टोकोकस जीवाणु (बैक्टीरियम) द्वारा उत्पन्न होता है जो आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा रूपांतरित किया जाता है। इसका प्रयोग रोगियों के रक्त वाहिकाओं से थक्का (क्लॉट) हटाने (‘थक्का स्फोटन’) के लिये किया जाता है।

अन्य जैव सक्रिय अणु ‘साइक्लोस्पोरिन-ए’ है। जिसका प्रयोग अंग प्रतिरोपण में प्रतिरक्षा निरोधक (इम्युनोसप्रेसिव) कारक के रूप में रोगियों में किया जाता है। इसका उत्पादन ट्राइकोडर्मा पॉलोस्पोरमनामक कवक से किया जाता है। मोनॉस्कस परप्यूरीअस यीस्ट से उत्पन्न इस स्टैटिन का व्यापारिक स्तर पर प्रयोग रक्त-कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाले कारक के रूप में किया जाता है। कोलेस्ट्रॉल के संश्लेषण के लिए उत्तरदायी एंजाइम स्पर्धा संदमन (निरोधण) की तरह क्रिया करते हैं।
जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव

आज पर्यावरण प्रदूषण चिंता का एक मुख्य कारण है। कृषि उत्पादों की बढ़ती माँगों को पूरा करने के लिए रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग इस प्रदूषण का प्रमुख कारण है। लोग अब समझने लगे हैं कि रसायनिक उर्वरकों के अधिकाधिक प्रयोग से कई समस्याएँ जुड़ी हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप जैविक खेती करने पर तथा जैव उर्वरकों के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। हाल ही में, भारत में जैव उर्वरकों की एक बड़ी संख्या बड़े पैमाने पर बाजार में उपलब्ध होने लगी है। किसान अपने खेतों में लगातार इनका प्रयोग कर रहे हैं। इससे मृदा पोषक की भरपाई तथा रसायन उर्वरकों पर आश्रिता भी कम हो रही है।
जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। इनकाजै मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। द्विदालीय (लैग्यूमिनस) पादपों की जड़ों पर स्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम के सहजीवी संबंध द्वारा होता है। यह जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर इसे कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं जिससे पादप इसका प्रयोग पोषकों के रूप में करते हैं। अन्य जीवाणु (उदाहरण ऐजोस्पाइरिलम तथा ऐजोबैक्टर) मृदा में मुक्तावस्था में रहते हैं। यह भी वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन अवयव बढ़ जाते हैं।
कवक पादपों के साथ सहजीवी संबंध (माइकोराइजा) स्थापित करते हैं। ग्लोमस जीनस के बहुत से सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं। इस संयोजन में कवकीय सहजीवी मृदा से फास्फोरस का अवशोषण कर उसे पादपों में भेज देते हैं। ऐसे संबंधों से युक्त पादप कई अन्य लाभ जैसे मूलवातोढ़ रोगजनक के प्रति प्रतिरोधकता, लवणता तथा सूखे के प्रति सहनशीलता तथा कुलवृद्धि तथा विकास प्रदर्शित करते हैं।

सायनोबैक्टीरिया स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमंडल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें बहुत से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर सकते हैं, जैसे- ऐनाबीना, नॉसटॉक, ऑसिलेटोरिया आदि। धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं। नील हरित शैवाल भी मृदा में कार्बनिक पदार्थ बढ़ा देते हैं जिससे उसकी उर्वरता बढ़ जाती है।
ये लेख मेरे द्वारा किये गए बिभिन्न किताबों और पत्रिकाओ के अध्ययन पर आधारित है ,ये लेख लेखक के अपने स्वंम के विचारों पर आधारित है .फोटो का सोर्स गूगल इमेज है ,जिनका इस लेख से कोई सम्बन्ध नहीं है ,

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