इतना महान रिक्शे वाला जो दिव्यांग ,बुजुर्ग और घायलों से किराया नहीं लेता सच्ची रुला देने वाली कहानी
काम भगवान है,शारीरिक रूप से दिव्यांग ,बुजुर्ग व्यक्ति और दुर्घटनाग्रस्त लोग मेरे वाहन में मुफ्त परिवहन का लाभ उठा सकते हैं -यह लिखा है मेरे ऑटो रिक्शा के पीछे। मैने यह फैसला अचानक नहीं लिया है। इसके पीछे एक मार्मिक कहानी है। करीब बीस साल पहले की बात है ,जब मै अपने घर लौट रहा था ,तो मैंने रसूलगढ़ में एक दुर्घनाग्रस्त आदमी को आसपास खड़े लोगों से मदद माँगते देखा। उस आदमी के आस पास अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा थी ,मगर कोई भी उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा था। मै अपने ऑटो के साथ पीछे भीड़ में फंसा था ,और चाहकर भी उस जरूरत मंद की मदद नहीं कर सका। बाद में मुझे पता चला कि उस आदमी ने दम तोड़ दिया। उस घटना ने मेरे दिलो दिमाग को इतना झकझोर दिया कि मै रात में सो नहीं सका। मै इस विषय पर सोचने को मजबूर हुआ। मैंने तय किया कि आज से किसी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति या कोई भी दूसरा जरूरत मंद मेरी आँखों के समाने दिखा तो मै उसकी मदद विना किसी शर्त के करूंगा। मै ओडीसा के कटक जिले के नियाली क्षेत्र के अपूजा गाँव में रहने वाला सैंतालीस वर्षीय ऑटो ड्राइवर हूँ। आजीविका के लिए मै मै ओडीसा की राजधानी भुवनेश्वर में ऑटो चलता हूँ। बीस साल की उस घटना के बाद मेरा हर दिन उन चन्द लोगों के काम आता है,जो सड़क पर मदद के हकदार होते हैं। चूंकि ऑटो ही मेरी आय और मेरे परिवार के भरण पोषण का जरिया है,इस लिए मै सभी लोगों को मुफ्त यात्रा नहीं करा सकता। फिर भी मै औसतन हर दिन चार पांच लोगों की मदद जरूर करता हूँ। इसके वाबजूद अपने परिवार की जीविका के लिए पांच सौ रुपये प्रतिदिन कमा लेता हूँ। मुझे खुशी है कि मेरे परिवार ने मेरे इस काम के लिए कभी नहीं रोंका ,और न ही इससे मेरे बच्चों की पढाई पर कोई असर पड़ता है,जोकि फिलहाल तीसरी और नवीं कक्षा के छात्र हैं। मेरी पत्नी सस्मिता ने कभी सवाल नहीं किया कि मेरे द्वारा किये जा रहे परोपकार में कितना ईंधन खर्च होता है,वल्कि उसने हमेशा हमारी तारीफ़ की। परिवार के इसी समर्र्थन की वजह से अब तक मै करीब सात हजार बूढ़े ,दिव्यांग और दुर्घटनाग्रस्त लोगों को उनके गंतव्य तक निशुल्क पंहुचा चूका हूँ।इसी काम की वजह से आज मेरे इलाके नियाली के बाशिंदे मुझसे प्यार करते हैं। उस अनुभव के लिए मेरे पास शब्द नहीं है जब वे मेरे काम की तारीफ करते है। मेरे जैसा मामूली ऑटो ड्राइवर जब बड़े बड़े मुंह से ऐसे प्यार भरे शब्द सुनता हूँ ,तो लगता है कि मै कितना अमीर इंसान हूँ। इसके आलावा उनकी दुआओं को भी मै अपनी अमूल्य संपत्ति मानता हूँ ,जिसकी मदद मै करता हूँ। साथ ही मै सामान्य यात्रियों से ज्यादा किराया नहीं लेता। मैं यह तो नहीं मानता कि मेरा काम बहुत बड़ा है ,लेकिन मैंने अपने साथ काम करने वाले दुसरे कई ड्राइवरों को ऐसे तमाम मौकों पर इंसानियत से दूर जाते हुए भी देखा है। मै चाहता हूँ कि मेरे काम का और दूसरे लोग भी अनुसरण करें ,जिससे हम अपने समाज और देश में सकारात्मकता को प्रोत्साहित कर सकें।
ये लेख अमर उजाला के प्रवाह पेज से लिया गया है .
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