आरक्षण एक मजाक नहीं, बल्कि एक सभ्य समाज का आईना है पढ़िए कड़वी सच्चाई
मंदिर में पुजारी की नियुक्ति आर्थिक आधार पर होती है या जाति के आधार पर। समाज में लड़का लड़की का संबंध आर्थिक आधार पर होता है या जाति के आधार पर। इस देश में सामाजिक भेदभाव (छुआ-छूत) आर्थिक आधार पर होता है या जाति के आधार पर। ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्णों का निर्धारण आर्थिक आधार पर हुआ था या जाति के आधार पर। देश में मनु द्वारा वर्ण व्यवस्था आर्थिक आधार पर बनी थी या जाति के आधार पर। इसके अलावा बहुत कुछ निर्धारण करते हो जाति के आधार पर,और आरक्षण चाहिए आर्थिक आधार पर,वाह रे , वाह ,अरे जाति से इतनी ही नफरत है तो क्यों नहीं देश में जाति के लिखने, बोलने, पूछने और बताने पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हो। जाति को लिखने बताने पूछने पर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान करो, जाति अपने आप समाप्त हो जाएगी और जाति आधारित आरक्षण भी समाप्त हो जाएगा । इसलिए इस देश के सभी धूर्त स्वार्थियो, खुदगर्जो देश से जाति मिटाने की मांग करो वरना जब तक जातिवाद रहेगा,आरक्षण आबाद रहेगा।
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